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चलने को तो चल रही है ज़िंदगी
बेसबब सी टल रही है ज़िंदगी ।

बुझ गये उम्मीद के दीपक सभी
तीरगी में ही पल रही है ज़िंदगी ।

ऐ खुदा ,रहमो इनायत पे तेरी
ये मुकम्मल फल रही है ज़िंदगी ।

हमसफ़र आ थाम ले दामन मेरा
बिन तेरे अब खल रही है ज़िंदगी ।

जो लहक तूने लगायी प्यार की
देख उसमें जल रही है ज़िंदगी ।

जैसे कोई बर्फ़ का सिल्ली हो ये
अब हरिक पल गल रही है ज़िंदगी ।

वैसे तो चार दिन की है मगर
आजकल में टल रही है ज़िंदगी ।

काश ,आए मेरे गुलशन में फिज़ा
चाह में ही ढल रही है ज़िंदगी । 

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