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धुरी

अब  कोई तुम्हे  अबला कहे
तो बतला देना कि कैसे
उस दिन ज्वर में तपते हुए
तुम्हारी आँख क्या लग गई कि
गृहस्थी की गाड़ी रुक गयी
अस्त - व्यस्त हो गया माहौल
पता नहीं तुम्हे अबला समझने वाले
कद्देवार मर्द यह
 समझ भी पाये या नहीं कि
तुम परिवार की धुरी हो।
तुम्हारी पसंद - नापसंद को दरकिनार कर
कोई कौड़ियों की मोल तुम्हे बेच दे
तो प्रतिकार करना
कुलटा कहने वाले लोग
चंद दिनों में तुम्हारी अहमियत
समझ जायेंगे।
और हाँ ,पैसों की थैली फेंक कर
एक रात की दुल्हन तुम्हे बनाने वाले
वेश्या कहते थे न ,
अब उनकी पैसों की थैली
उनपर ही फेंककर जतला देना कि
उन्होंने अपनी आत्मा गिरवी रखी है
तुमने नहीं ,तुम तो प्राणवायु हो
जिसके बिना जीवन की कल्पना भी नहीं। 

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मैं  क्या  हूँ 
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मैं  क्या  हूँ ?
अक्सर सोचता हूँ 
सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ता 
एक अस्तित्व 
या अपनी प्रशंसा पर इठलाता 
एक अभिमान 
स्व की रक्षा करता एक स्वाभिमान 
या कर्मपथ पर अग्रसर एक कर्तव्य 
रोज़मर्रा की जद्दोजहद से लड़ता 
एक अधिकार 
या काले हर्फों में रचता  एक विचार 
कभी - कभी तो लगता है कि 
सारे दुखों का जड़ है यह " मैं "
मृगतृष्णा सी चाहतों का जंजाल लिए 
नित नए प्रतिद्वंद्वी बनाता 
अनुभवों की पोटली ढ़ोता
एक स्वार्थ 
या कभी - कभी एक परमार्थ 
आखिर क्या हूँ मैं ?
जब शून्य में लीन होता
अनेक अंध परतों को खंगालता 
जान गया कि मैं  मात्र भ्रम हूँ
जीवन की भूलभुलैया में खोता
नश्वर देह में अमरता ढूँढता 
कितना नासमझ मैं !
शारीरिक आवरण में छिपे 
उस सूक्ष्म तत्त्व को अब जान गया 
तमाम पहचानों से परे   
मैं और कोई नहीं 
मैं ब्रह्म हूँ।  

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