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तुम्हारे नाम का


होते   नहीं कभी तुम मेरे पास 
बस तुम्हारे होने भर का अहसास 
क्या - क्या  गज़ब ढाता है 
खिल उठते हैं शीत के कांस 
साथ गुलमोहर मुस्काता है। 
देह्गन्ध की परिचित सुवास 
हवाओं में मिश्रित  आभास 
बोझल शामों में रंग भरता है 
बज उठते हैं वीणा के तार 
मन का पाखी चहक जाता है।
 जीते  हैं हम लेकर यह आस 
लौटेंगे कभी तो वो पल खास 
कहते हैं इतिहास दोहराता है 
टूटते तारों को ढ़ूँढती हैं निगाहें 
चाँद कुछ नीचे  सरक जाता है। 
पतझड़ में उधड़े हैं लिबास 
हिय में फिर भी उजास 
आशाओं में तरवर फलता है 
और एक बीज अंतस में 
तुम्हारे नाम का जी जाता है। 

ब्लॉ.ललित शर्मा  – (17 October 2013 at 08:12)  

सुन्दर भावाभिव्यक्ति

विभूति"  – (18 October 2013 at 01:46)  

बहुत ही खुबसूरत और प्यारी रचना..... भावो का सुन्दर समायोजन......

दिगम्बर नासवा  – (21 October 2013 at 01:41)  

प्रेम के एहसास से पगी भावपूर्ण रचना ...

Jyoti khare  – (21 October 2013 at 05:19)  


आशाओं में तरवर फलता है
और एक बीज अंतस में
तुम्हारे नाम का जी जाता है। -----

प्रेम का महीन अहसास
सुंदर अनुभूति
सादर

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