स्पर्श प्यार का
दिल में आशियाँ बनाने वाले ,काश ऐसा होता
कभी सैर के बहाने ही आते ,दिलासा तो मिलता ।
बादलों संग आँख मिचौली खेलना ,चाँद की फितरत
जी चाहता है पहलु में छुपा लूँ ,तुमसे न होऊँ रुख़सत।
प्यार के परवान में पिंजर भी है मंदिर बन जाता
हर्ष में हिलोरें लेता मन ,कभी विषाद में गहराता ।
ज़हर पीता है कोई ताउम्र ,कोई आँखों में बसता
यही है जीवनाधार ,चारदीवारी से कहाँ घर बनता ।
प्यार के रंगों की अपार विस्तार में है दुनिया
कोई खुशबुओं का जहाँ कहता ,कोई आग का दरिया ।
कोई चाँद में हूर ढूंढता है ,कोई इबादत का ज़रिया
बड़ी कशमकश है ,कहीं अमावस कहीं चांदनी दुधिया ।
स्पर्श प्यार का अक्षुण्ण ,अमिट, शाश्वत है
अनुभूतियों का सागर कहीं खारा कहीं मीठा है ।
आरजुओं के समंदर में तैरते सभी ,लिए सहारे अनेक
अंगारों पे चलना भी भाता ,बेपर उड़ता हरेक ।
आ जाओ तुम पयोद बन ,पीयूष बरसाओ
छा जाओ मेरे आकाश में ,ना अब तरसाओ।
देखो बन गयी हूँ मैं ऊसर ,निष्प्राण धरा
सोंधी महक उड़ाती कर दूँगी चितवन हरा ।