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          जीवन अमृत

तमाम झंझावातों के उठा - पटक में भी 
ज़िन्दगी ,तुम खूब भाती हो 
हर घड़ी इंतहा लेने की जिद 
तुम्हारी कम नहीं हुई 
हर जिद में खरा उतरते - उतरते
मैं भी जीवट हो गई।
विस्मृत नहीं हुईं  हैं वो शोखियाँ 
रिश्तों की तपिश ,मासूम गलतियाँ
क्या खोया ,क्या पाया का मकड़जाल
चाह कर भी उलझा नहीं पाता है 
थपेड़ों की मार  जैसे साहिल गले लगाता 
मैंने भी हर चोट बखूबी सहेजा  है ।
गिरकर संभलने की फितरत 
अब तो आरज़ू बन गई है 
अंगार पर चलूँ या आँधियों के मध्य 
चुनौतियों का निमंत्रण हरदम स्वीकारा है 
फिर भी ,हम शतरंज की शह - मात नहीं 
जिंदगी मैंने तुम्हे बेहद प्यार किया है ।
अनुभवों की भारी पोटली लिए 
मूल्यांकन करती जीवन चक्र का 
जीवन की संध्या ढलता सूर्य भले हो 
पर सुनहरी सुबहा का भी संदेशा है 
फूलों की डालियाँ काँटे भी संजोए है 
यथार्थ यही जीवन अमृत में पाया है ।

Gyan Darpan  – (2 December 2012 at 17:33)  

बहुत बढ़िया रचना
Gyan Darpan

जयकृष्ण राय तुषार  – (2 December 2012 at 17:42)  

बहुत ही अच्छी कविता |

Anita Lalit (अनिता ललित )  – (3 December 2012 at 00:24)  

अच्छी, सकारात्मकता लिए हुए सुंदर कविता !:)
~सादर!!!

मेरा मन पंछी सा  – (3 December 2012 at 05:24)  

सकारात्मक भाव लिए बहुत सुन्दर रचना..
:-)

virendra sharma  – (3 December 2012 at 09:34)  

अच्छा बांधा है भाव जगत के आलोडन को मंथन को .

अब तो आरज़ू बन गई है
अंगार पर चलूँ या आँधियों के मध्य
चुनौतियों का निमंत्रण हरदम स्वीकारा है
फिर भी ,हम शतरंज की शह - मात नहीं
जिंदगी मैंने तुम्हे बेहद प्यार किया है ।
अनुभवों की भारी पोटली लिए
मूल्यांकन करती जीवन चक्र का
जीवन की संध्या ढलता सूर्य भले हो
पर सुनहरी सुबहा का भी संदेशा है
फूलों की डालियाँ काँटे भी संजोए है
यथार्थ यही जीवन अमृत में पाया है ।

kavita vikas  – (4 December 2012 at 05:51)  

पसंद करने वाले हर मित्र को मेरा कोटिशः आभार ,धन्यवाद

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