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              विश्वास 
मधुर से इस शब्द की टंकार
रूह से रूह को जोड़ती है 
रिश्तों के फलने का है यह आधार 
वरना जीवन नासूर बन जाती है ।
वर्षों तक साथ रहना 
महज एक औपचारिकता है 
गर न हो विश्वास का सेतु 
तो ज़ख्मों का रिसाव स्वाभाविक है। 
विश्वास की बुनियाद जब हिल जाती है 
रिश्तों की गाँठ तब न खुल पाती है 
विवाह होता है सात जन्मों का बंधन 
तभी जब विश्वास की चासनी में घुले हों 
नहीं तो एक जन्म ही 
सात जन्मों का भार बन जाता है ।
विश्वास है जीवन की धुरी 
जहां न पनपता वहाँ 
रहती है रिश्तों में दूरी 
विश्वास से प्रेम है 
प्रेम से भाव है 
भाव से जीवन की  कविता है ।
विश्वास के खाद से ही 
कब्र पर खिली - खिली घास है 
जिसके कोमल अहसास से 
बिछोह के दमघोंटू क्षण पाते साँस हैं ।
वरना अविश्वास के कंटक तो 
केवल छलते और खुद को छलाते  हैं ।

ANULATA RAJ NAIR  – (17 October 2012 at 05:23)  

बहुत अच्छी रचना....

अनु

मेरा मन पंछी सा  – (17 October 2012 at 06:02)  

बहुत बेहतरीन रचना..
जहाँ विश्वास न हो वो बंधन
बोझ से कम नहीं....
:-)

रविकर  – (17 October 2012 at 06:46)  

सुन्दर प्रस्तुती आदरेया ||

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