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ग़ज़ल
                        ज़र्रा - ज़र्रा नम है
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दिन -रात आँखों में ख्वाब होते हैं
कमाल - ए - इश्क  लाजवाब होते हैं ।

अहसास बन जो रूह में उतरते हैं
सिहरनों में उनकी हम ढलते जाते हैं ।

अक्स तुम्हारी खुशबू बन महकती है
संभाले कोई, हम तो निढाल हुए जाते हैं ।

बार - बार ख़त लिख कर फाड़ डालते हैं
इश्क की परीक्षा में इसलिए उलझते जाते हैं ।

राख़ पर चल दें हम तो वो भी सुलग जाए
हुस्न ऐसा बेमिसाल कि मगरूर हुए जाते हैं।

धुआँ- धुआँ है आसमां ज़र्रा - ज़र्रा नम  है
एक मदहोश  है ,एक पानी -पानी हुआ जाए ।

बेतरतीब है आलम ,क्या दिन क्या रात
फिसलती ज़ुबां पर होती सिर्फ हमारी बात ।

अब तो बदनामियों से भी  डर नहीं लगता है
लगता है इश्क के उस मुकाम को हमने पा लिया है ।


           

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  मैंने मर - मर कर जीया है 

बेशुमार शिकायतों को सीने में दबाए
 नफ़ीस मुस्कान को मैंने गले लगाया है ।
अपने  हज़रत को नज़र ना लग जाए 
हर झरोखे पे मैंने पर्दा चढ़ाया है ।

बहारें टिकी हैं मौसम के मिज़ाज पे 
मेरे बहार का ठौर मैंने तुममे पाया है ।
तुम्हारे दो पल के साथ की आरज़ू में 
कितनी रातें मैंने आँखों में बितायी है ।

पर काट परिंदे को छोड़ दिया उड़ने को 
हाशिये पर रह मैंने अस्तित्व संभाला है ।
तुम उधेड़ते रहे जीवन के पन्ने को 
समेटने में उन्हें मैंने उम्र गुज़ारा है ।

शब्दों के तीर चलते ज़माने की चर्चाओं में 
हर ज़ख्म को मैंने फूल की  मानिंद सहेजा है ।
तुम्हारी बुलंदियों का राज़ है मेरी मन्नतों में 
हर मज़ार पर मैंने चादर  चढ़ायी है।

मुज़तर कर  रम गए प्यार के व्यापार में 
घूँट ज़हर का मैंने अमृत सरीखा पीया है ।
तुम्हारी फंतासी दुनिया के तिलस्म में 
कितनी बार मैंने  मर - मर कर जीया है ।

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                       इंतज़ार 
तुम्हें पता है  न ,इंतज़ार का आलम 
अगन - कुंड में जलने जैसा  होता है
वह  आग जिस पर पानी भी 
नहीं डाला जा सकता है  
किसी की दुआ और सहानुभूति 
कारगार नही होती है 
हर आहट पर चौंक कर पलटना 
हर ध्वनि पे उस पहचानी सी आवाज़ को तलाशना 
बिन पलकें झपकाए हर अपरिचित साए को भाँपना
बेचैनी के साथ शर्मिंदगी भरा भी होता है 
और वह बेरहम पल जो आगे बढ़ता ही नहीं 
मानो  समय नहीं ,युग बीत रहा हो 
जज़्बातों की दौड़  इस होड़ में कि
पहले मैं  निकलूं ,पहले मैं 
शिराओं की तंग  नलियों में उत्पात 
मचाने लगती है 
चेहरे की लालिमा एक अज्ञात भय से 
नीली - काली होने लगती है 
कभी सीढियां ,कभी बालकोनी ,कभी खिड़की 
शायद  ही कोई जगह हो जहाँ
पैर न खींचे चले जाते हों 
और जब इंतज़ार की घड़ियाँ ख़त्म होती हैं 
तब मानों लावा बिखेर कर 
ज्वालामुखी शांत हो गया हो 
न कोई शब्द फूटते ,न बोली 
केवल आँखें बोलती हैं 
कुछ शिकायतें ,कुछ इनायतें 
ख़ामोशी से मुखर पड़ते हैं 
घड़ी की सुइयों की रफ़्तार तो देखो 
बिन हाँफे दौड़ती जाती हैं 
जुदाई की बेला चौखट  पर आ खड़ी होती है 
तुम्हे साथ ले जाने को 
और मुझे एक नए इंतज़ार में छोड़ जाने को ।

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                      स्त्री 

जीने का सलीका सीखने वाली 
परिवार की धुरी बन जिलाने वाली 
स्त्री ,कितने रूपों में तुमने जीया है ?
बेटी बन कर बाबुल की गोद में फुदकती 
घर - आँगन की शोभा तुमसे सजती 
तुम सौभाग्य का प्रतीक बन जाती 
और एक दिन अपने ही चौखट के लिए 
परायी बन जाती 
फिर आरम्भ होता तुम्हारा नवावतार
चुटकी भर सिंदुर की गरिमा में 
बलिदान कर देती अपना अस्तित्व 
अन्नपूर्णा बन बृहद हो जाता व्यक्तित्व 
दुःख की बदली में तुम सूर्य बन जाती 
हर प्रहार की ढाल बन जाती 
और जिस दिन वंश तुमसे बढ़ता 
तुम स्त्रीत्व की पूर्णता को पाती 
माँ की संज्ञा पाते ही वृक्ष सा झुक जाती 
ममता ,माया ,दुलार एक सूत्र में पिरोती 
तुम ही लक्ष्मी ,तुम ही सरस्वती होती 
बेटी ,पत्नी और माँ  को जीते - जीते 
तुम जगदम्बा बन जाती 
इतने रूपों में भला कोई ढल पाया है ?
एक ही शरीर में इतनी आत्माओं को
 केवल तुमने  ही जीया है ।
पर कितनी शर्मनाक बात है ,
 अपनी ही कोख में तुम मार दी जाती हो !!!

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                    जिंदगी 
 शतरंज की बिसात सी ज़िन्दगी 
जब तक सपाट थी ,थी 
एक बार जो शुरू हुआ 
अपनों और गैरों के बीच द्वंद्व 
फिर तो शह और मात में ही 
उलझ कर रह गयी है ।

अनगिनत सवालों के भंवर में ज़िन्दगी 
जब तक जूझ रही थी ,थी 
एक बार जो बाहर निकल आयी 
तो  अपने ही शक्ति परीक्षण  पर उठा प्रश्नचिन्ह 
मुखौटों से लदे चेहरों की परिभाषा 
स्वयं ही रच रही है ।

शब्दों के मायने निकालने में ज़िन्दगी 
अपने ही चक्रव्यूह में घिर रही है 
सही - गलत के पैमाने बदल गए 
किंकर्त्तव्यविमुढ़ सी जड़ हो गयी 
सत्य हार गया और झूठ की आंधी 
रौंदती जा रही है। 

अपने ज़ख्मों पर मरहम लगाती ज़िन्दगी 
उदार और विशाल हो गयी है 
खुशियाँ छलावा हैं  
दुःख क्षणिक हैं 
महानिद्रा में समाने से पहले 
अनुभवों का क़र्ज़ चूका रही है ।

बेहिसाब दौड़ती - भागती ज़िन्दगी 
पसीने में तर - बतर है 
बंद रोशनदान की सुराख से आती 
मंद - मंद  पवन सहलाती है 
अब तो बोधिवृक्षों  की छाँव तलाशने में 
मेरे वक़्त की रफ़्तार जूझ रही है ।

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          धूप 
आँगन में उतरती हुई 
 नर्म ,गुनगुनी धूप 
बड़ी भली लगती है
 अलसाई सी दिनचर्या में 
अचनक रफ़्तार आ जाती है 
माँ की बड़ियाँ सूखने लगती हैं
 आर्द्र कपड़े गरमाने लगते हैं 
और जाने क्या - क्या ...
देखते ही देखते पूरा कुनबा 
आँगन में सिमट जाता 
बालों में तेल लगाने से लेकर 
बिटिया की मँगनी के दिन तय करने में 
चौपालें सजी रहतीं उसी   जगह 
मोहल्ले वाले भी जुटते जाते 
छोटी से छोटी ,बड़ी से बड़ी 
समस्याओं का हल 
धूप की गर्माहट से हो जाता ।

अब जब जाड़े की प्रातः में 
गज भर बालकोनी में 
छिटपुट धूप को पकड़ती हूँ 
कमरे से  आवाज़ आती है 
हॉट ब्लॉअर में आ जाओ न ..
मैं मायुसी से अन्दर जाते हुए सोचती हूँ 
तुम क्या जानो धूप क्या होती  है ?
धूप ,तुम सामाजिकता का पर्याय हो 
रिश्तों की नरमी का अहसास हो 
बचपन को संजोया चलचित्र हो
हम तो गमलों में पल रहे कैक्टस हैं 
सुखों की कँटीली बाड़ से घिरे हैं 
जिन प्रस्तर - प्राणों ने देखा नहीं आँगन 
वो क्या जाने धूप की गर्माहट क्या है। 

धूप  तुम तो अब भी वही हो 
 प्यारी सी ,नर्म ,गुनगुनी सी 
मन करता है झपट कर तुम्हें
अंजुरी में भर लूँ और डूबो दूँ 
अपने तन - मन को और 
जी लूँ अपने बचपन को 
या फिर फैला दूँ संकीर्णता से भरे 
कबूतरखाने जैसे महानगरीय फ्लैट 
के कोने - कोने में 
तुम्हारे गर्म अहसास भेदकर 
भावशून्य मन - मस्तिष्क को 
भर दे तुम जैसी गुनगुनी चमत्कार को ।


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     आसमां मेरे हिस्से का 

वृक्षों के छालों सा 
सांप की केंचुली सा 
पुराना आवरण बहुत भारी था 
मवाद के रिसाव सा  बदतर था ।
देखा छालों को गिरते 
समय की प्रवाह में बहते 
मैंने भी वह आवरण उतार दिया 
समय के साथ जीना सीख लिया ।
विरस पतझड़ पर सरस सावन सा
रात पर प्रभात की विजय सा 
मैंने अँगड़ाई लेना सीख लिया 
पथ के शूलों को फूल बना लिया। 
दर्द के दरिया से पा रही त्राण हूँ 
आखिर प्रकृति की अनमोल प्राण हूँ। 
कुंठाओं का परित्याग कर मन का द्वार खोल दिया 
हवाओं के आवागमन ने हर शिकन उड़ा दिया ।
कोहरे से छंटती भोर सा 
ओस की गुदगुदाती स्पर्श सा 
नर्म ,मखमली संसार रचा है 
और अपनी ही आभा बिखेर दिया है ।
गज  भर ज़मीं पैरों के नीचे  की 
बेहद मज़बूत हो गयी  है 
मुट्ठी भर आसमां मेरे हिस्से का 
इन्द्रधनुषी हो गया है ।

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