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मेरी यह कविता "चुनौती" हिंदी मासिक पत्रिका "इंक़लाब" के मार्च अंक में प्रकाशित हुई है ।

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              वसंत
नवजीवन का उल्लास लिए आया ऋतुराज
मन का बावरा पंछी चहक रहा आज
कभी नील गगन में ,कभी छत की कगार
नग्न वृक्षों पर चढ़ा वसन कर सोलह श्रृंगार

वसंत तुम केवल ऋतुचक्र नहीं ,मेरे प्रतीक हो
मेरी कई अनकही बातों का उद्गार हो
अपनी दर्पण में देखो ,मेरी ही चंचलता है
मेरी साँसों की गर्मी में ,तुम्हारी ही उष्णता है

पलाश अब मत चिढ़ा अपनी टहकार से
तकती आँखें  चमक रही आत्मीय इकरार से
पपीहे छेड़ राग प्रिय ने पाती भेजा  प्यार का
लाज का पट हटा मेहंदी लगा लूं उसके नाम का 

परागकण झाँक रहे खोल घूँघट किसलय का
बन मधुप  उड़ आओ नेह निमंत्रण है मलय का
आँखों में कटती रात ,बीत जाए मधुमास
समरस हो जाए साँस ये बहार बन जाए ख़ास


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कामनाएँ



साल दर साल रैन बसेरा 
का  साथ मत दो 
बस एक ख्याल ही अपना आने दो
गगन के विस्तार सा आयाम मत दो 
बस एक कोने में सिमटा सूर्य बन रहने दो
सावन की हरियाली सा संजीवनी अहसास मत दो 
बस एक अमलतास बन मुस्काने दो
सर्द रातों में बाहों के घेरे का जकड़न मत दो 
बस टिकने के लिए कंधे का सहारा दे दो
आँखों में बंद ख्वाबों का आसरा मत दो 
बस अपनी एक बेचैन पल का हवाला दे दो
दूब की मखमली चादर पर साथ चलने दो
बस ओस की एक बूँद बन गिर जाने दो
अपनी दूरियों के उन घंटों का हिसाब मत दो 
बस मुझे तन्हाई में जीने के कुछ मंत्र दे दो 

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कशिश


शाम के धुंधलके का पहला तारा
रात के अंतिम पहर तक, थका - हारा
तुम प्रहरी बन  सामने टिके रहते हो
खिड़की से बस मुझे झांकते रहते हो ।

कुछ तो है जो तुम कह नहीं पाते
आग इधर की, क्यूँ समझ नहीं पाते
मन में एक हुलक सी उठती है
खामोश मुलाकात बड़ी खलती है ।

तुम्हारे हौसलों ने अरमानों को पंख दिया
अंगारों पर चलना मैंने सीख लिया
लताओं सी कोमल, झेलती हर प्रहार
सब्र का ना लो इंतहा,जोड़ लो उर तार।

इक इक पल ,इक -इक  साल लगता है
कभी - कभी तो वक़्त भी ठहर जाता है
बड़ी कशमकश है ,अजीब तपिश है
 दूर रहूँ तो पास आने की कशिश है।

मेरी धड़कनों में नाम है बस  तुम्हारा ही
रुसवाई कैसी, रुसवा हूँ तो तेरे नाम से ही
 जिस बात को कहने में शब्द अटक रहे हैं
 वो बात ज़माने वाले बखूबी कह रहे हैं ।

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मेरी जिंदगी


                              
मेरी जिंदगी एक खुली किताब है
हर पन्ने पे तेरा नाम है
मैं रहूँ रहूँ ,परवा नहीं है
जिंदगी मेरी तुम्हारे नाम है

जब कभी ख्यालों की आंधी उठेगी
तन्हाई में भी मेरी आवाज़ गूँजेगी।
परछाई बनकर तुम्हारे पास रहूँगी
गेसुओं की छाँव से ढक लूँगी।

जीने के पैमाने यों तो बहुतेरे हैं
हर रंग पर फीके हो चले हैं
जिन शोख रंगों में तुम्हारी तस्वीरें हैं
मन के कैनवास में बखूबी उकेरे हैं

सितारों की महफ़िल जब - जब सजेगी
 तुम्हारी निगाहें मुझको ढ़ूँढ़ेगी।
चमने इश्क की खुशबु  पहचानी सी होगी
चाँद को शिकस्त देती नूर मुझसे होगी

अपनी यादों का कारवाँ रोक लेना
बाँहों का दायरा ज़रा बढ़ा देना
तोड़ हया की दीवार ,आगोश में ले लेना
उस शामे बसहर को मेरे नाम कर देना

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वक़्त का वज़ूद



                वक़्त का वजूद 


वक़्त की बेलगाम रफ़्तार का वजूद 
है स्नेहसिक्त माँ की आँचल में मौजूद ।
दिखता है चेहरे की गहराती रेखाओं में
और कभी -कभी जीवन की भूलभुलैया में  । 


सन्नाटों में गूँजती है मेरी चहक 
कोने -कोने में है मेरे होने की महक ।
प्रियजनों का छूटता साथ ,रिश्तों की बारीकियाँ
कभी रुलाती कभी सहलाती ,अमिट ये निशानियाँ ।


जिन शक्त हाथों को थामे चलना सीखा 
उनकी लकीरों में युगों का अंतराल दिखा ।
उन काँपती बेजान हाथों की नरमी 
अब तक छुपाये है प्रचुर नेह की गरमी।


जीवन का यथार्थ एक कटु दिवास्वप्न है
 रेत बन तुरंत  मुट्ठी से फिसल जाता है ।
अतीत के गर्भ में चाहे सब कर दो विसर्जित 
कुछ कालखंड सदा रहते दिल में सुसज्जित ।

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