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मैं तैयार हो जाऊँ



              मैं तैयार हो जाऊँ


वो शब्द कहाँ से लाऊँ
जिसकी अभिव्यक्ति की उष्णता
झंकृत कर दे तुम्हारे हृदयतंत्री के तार
मोहक हो जाए जीवन निस्सार
पुनः पल्लवन को मैं तैयार हो जाऊँ।


वो लम्हा कहाँ से लाऊँ
जिसकी तरंगों में न हों स्मृतियाँ
प्रेमरस में लिप्त तुम्हारे नैन कुसूरवार
दे रहे मौन निमंत्रण बारम्बार
मोहपाश में बंधने को मैं तैयार हो जाऊँ।


वो रात कहाँ से लाऊँ
जिसकी शाशिसिक्त शीतलता
थाम ले तुम्हारे दिल के तूफ़ान
रोक अनकही  बातों का उफ़ान
आत्म - विसर्जन को मैं तैयार हो जाऊँ ।

amresh mishra  – (16 May 2012 at 02:01)  

tham le tumahare dil ke tufan....gajab abhivyakti hai bhav ki dil ki dhadkano ko chu rhi hai kavita

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