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"अहसास" (कविता विकास)

झुक रहा गगन बार -बार आलिंगन को
क्यूँ आज बेसब्र धरा ,पास है मिलने को ?
सतरंगी रवि किरण ,भाती नहीं मन को
क्यूँ आज बेचैन है मन, धवल चाँदनी को ?

ठूँठ पड़ी अमलतास थी भाग्य पर कातर
नव पल्लव क्यूँ आज, श्रृंगार को है आतुर ?
सज गए सेज पलाश के ,महक रहा मलय बयार
बार -बार क्यूँ अरमाँ करवटें लेता ,उमड़ पड़ते ज्वार?

जो तुम आ गए , ऊसर मन -प्राण खिल गया
क्यूँ निर्बाध बहता समय ,मुट्ठी में क़ैद नहीं हुआ ?
पावस फुहार से मन का कोना -कोना भीग  गया
क्यूँ ढुलक गए बूंद नैनों से ,हर्ष वेग उफनता हुआ ?

वह साथ क्षणिक था ,पल दो पल का
भला क्यूँ खिड़की के कोने से, चाँद झांक रहा है ?
कहीं वह गवाह तो नहीं ,उस चिरंतन अहसास का
भला क्यूँ उसके नाम से ,हृदय धड़क रहा है ?

'मैं' से 'हम' तक का सफ़र ,बर्फीले मरू से हरियाली है
आसमां के पैबंद तभी ,आज खाली -खाली हैं ।
सितारे बिछ गए ज़मीं पर ,अमावस नहीं काली है
तन्हां नहीं अब हम ,आज हमारी दीवाली है ।

kavita vikas  – (13 December 2011 at 09:01)  

ये आपका बड़प्पन है कि आपने मुझ जैसी रचनाकार को चर्चा मंच पर जगह देकर मुझे प्रोत्साहित किया है । सदा आभारी रहूंगी । धन्यवाद ।

दिगम्बर नासवा  – (14 December 2011 at 04:35)  

प्रकृति को मध्य में रख कर लिखी बेजोड रचना ...

kavita vikas  – (14 December 2011 at 08:40)  

@digamber naaswa - thank you,your comments boost me up.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  – (15 December 2011 at 07:18)  

कविता जी!
आशा है कि आपको अपने ब्लॉग कविता विकास का नया कलेवर "काव्य वाटिका" पसन्द आया होगा!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  – (15 December 2011 at 07:19)  

आप अपनी पोस्ट के साथ रचना की शीर्षक भी लगाया करें। फिर no title लिखा हुआ नहीं आयेगा।

amresh mishra  – (4 August 2012 at 14:32)  

bhala kyu unke nam se dil dhadk rha hai...gajab...bahut sundar likha hai

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